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ना कोंसो अब हमें

truth difficult 2 accept
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emotional-abuse-and-mental-illnessi-next में उठाये गये प्रश्न ‘तो क्या लड़कियां ही हैं रेप की जिम्मेदार?’ के मुख्य दो कारण हैं- एक, कि यह प्रश्न वास्तव में जानना चाहता है कि रेप का वास्तविक कारण है क्या? दूसरा, इस प्रकार की शर्मनाक एवं दुखद घटनाओं के प्रति आने वाले वे असंवेदनशील संवाद जो उच्च पदों पर विराजमान शिरोमणियों के मुख से प्रकट हुए। डिप्टी कमिश्नर, डीजीपी, दिल्ली पुलिस कमिश्नर, सीएम दिल्ली एवं दिल्ली पुलिस, सभी के अनुसार लड़कियां अपने साथ हुई किसी भी दुर्घटना के लिए स्वतः जिम्मेदार है। किसी के अनुसार लड़कियों का पहनावा दोषी है तो किसी के अनुसार असमय उनका असुरक्षित यात्रा अथवा नौकरी करना। कितनी विचित्र स्थिति है कि एसी आफिस में बैठने वाले अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने के लिए ‘चोरी और ऊपर से सीना जोरी’ कर रहे है! पुलिस एवं सरकार की पहली जिम्मेदारी देश के प्रत्येक नागरिक को सुरक्षा के भाव का अहसास कराना है। ऐसे में ये उल्टी नसीहत उन्हें नागरिकों द्वारा कष्ट प्रदान न किये जाने का आदेश दे रही है। उन्नति की दौड़ में अपेक्षाओं से अधिक परिणाम प्रस्तुत कर अपने वजूद का लौहा मनाने वाली महिलाओं को सुरक्षा के नाम पर कैसे घर बैठकर आलू-गोभी काटने का हुक्म सुनाया जा सकता है? और इस प्रकार कैद महिलाओं की आन्तरिक सुरक्षा की क्या गारंटी? 15 मार्च 2012 को अमर उजाला में प्रकाशित समाचार ‘ नौ साल की उम्र में पहला एबार्शन’ लड़कियों की घरेलु सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह आरोपित करने के साथ-साथ दी जाने वाली नसीहतों को शर्मिंदा भी करता है। नाबालिकों के साथ आये दिन होने वाले दुर्व्यवहारों के लिए हमारे इन आलाकमानों के पास क्या नसीहत है? ऑफिस में बैठकर सुझावों एवं सलाहों के भँवरों में आम आदमी की सोच को गुमराह करने से बेहतर है एक सटीक रणनीति का निर्माण किया जाए और एक ऐसा समाधान प्रस्तुत किया जाये जिससे वास्तव में लड़कियों को सुरक्षित संरक्षण प्राप्त हो सके और वे अपने सपनों का आकाश पा सकें।

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